छत्तीसगढ़ ‘वर्णमाला अउ नांव’ एक बहस

‘ये पाती कई झन साहित्यकार करा पहुंचे हावय। दिनेश चौहान ह एक विचार सब ला सोचे बर देय हावय। स्वर, व्यंजन के सही उपयोग करना हे, पहिली वर्णमाला तय करव ओखर बाद अक्छर के उपयोग करे जाय। अक्छर अइसना होवय जेन ह आज ले सौ साल पहिली ले उपयोग म आवत हावय। ये पाती के उत्तर तो मिलबे करही, सब सोचही अउ एक सही रूप झटकुन आ जही।’
अभी तक नांव लिखे म हिन्दी के प्रभाव चलत हे। काबर के पढ़े-लिखे के भासा अभी तक हिन्दीच बने हवे। हमला पता हे हिन्दी वर्णमाला अउ छत्तीसगढ़ी वर्णमाला में अक्छर के संख्या अलग-अलग हे। छत्तीसगढ़ी म अक्छर के संख्या 44 स्वीकार करना चाही। जउन लिखे अनुसार हो सकथे।
स्वर- अ, आ, ई, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं।
एमा ‘ऋ’ अउ ‘अं’ सामिल करे गे हे काबर के कुछ संपादक मन एक प्रयोग करे कोती धियान नइ दे हे।
व्यंजन -क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, स, ह, त्र, ज्ञ।
‘ऋ’ अउ ‘अं’ के तरह एमा ‘त्र’ अउ ‘ज्ञ’ ल सामिल करे गे हे जेकर उपयोगिता आगू इस्पस्ट करे जाही।
एकर मुताबिक वर्नमाला म अक्छर के संख्या 44 हो जाथे। ये 44 अक्छर अउ अनुनासिक ‘ँ’ के मुताबिक छत्तीसगढ़ी नाव ऊपर विचार करे जा सकथे। एकर बर कुछ उदाहरन लेना परही। जइसे कुछ हिन्दी नांव हे- नारायण, शिवशंकर, महेश, सुशील, गणेश, क्षमा, आशीष, शेष, किशोर आदि। एकर छत्तीसगढ़ी भासा में उच्चारन नारायन, सिवसंकर, महेस, सुसील, गनेस, छमा, आसीस, सेस, किसोर होही। का छत्तीसगढ़ी भासा के हित बर अइसन बदलाव जरूरी नइ हे? एकर ऊपर बहस होना चाही। दूसर बात हे हमन बहुत अकन छत्तीसगढ़ी नाव के घलो हिन्दी करन कर देथन। जइसे- सतरूहन, सतरोहन, सरसती, लछमी, पारबती, रूखमनी, रमेसरी, भुनेसरी, गनेसिया, बीना, दुवारिका, अजोध्या आदि निमगा छत्तीसगढ़ी नांव आय। ये असुध्द हे कहि के सुधार के लिख दे जाथे। काबर? आज जब छत्तीसगढ़ी भासा ल प्रतिस्ठित करे के बात जोर-सोर से उठाय जात हे तब इहू बात कोती धियान देय ल परही। मैं तो नानकुन आदमी आंव, भासा विज्ञानी मन के बिचार ये बिसे म आना चाही। मैं समझथौं नंद किशोर शुक्ल श्यामलाल चतुर्वेदी, पालेश्वर प्रसाद शर्मा, नंद किशोर तिवारी, सुशील भोले, दानेश्वर शर्मा, मुकुन्द कौशल, काशीपुरी कुंदन, चंद्रशेखर चकोर, लक्ष्मण मस्तूरिया, डॉ. परदेशीराम वर्मा, डॉ. दशरथ लाल निषाद, रामेश्वर वैष्णव, रामेश्वर शर्मा, केयूर भूषण, डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र (एमा मोरो नाव ल सामिल मानौ) जइसे नांव वाला साहित्यकार मन ल अपन नांव के वर्तनी बदले बर तियार होना चाही।
ऊपर जउन वर्नमाला के संख्या देय गे हे वो ह बोलचाल के छत्तीसगढ़ी म प्रयुक्त होथे। आज अधिकांस साहित्यकार बोलचाल के छत्तीसगढ़ी के हिमायत करथें। यदि बोलचाल ल ही कसौटी माने जाय तो भी हमला छत्तीसगढ़ी भासा म ‘श’, ‘ष’, ‘ण’ अउ ‘क्ष’ के प्रयोग ल बंद करे ल परही। नांव के वर्तनी बदले के बात इही संदर्भ में करे गे हे।
वर्नमाला म ‘ऋ’, ‘अं’, ‘ज्ञ’, अउ ‘त्र’ ल सामिल करई ल कतको झिन आपत्ति करही। खास कर ‘छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर’ बिलासपुर ह। ओखर मुताबिक वर्नमाला में 40 अक्छर अनुस्वार ‘ं’ अनुनासिक ‘ँ’ हे। ओमन ल ये समझाना जरूरी हे के जब ‘ज्ञ’ अउ ‘त्र’ के उच्चारण म कोनो अंतर नइ हे तो ओकर स्वरूप बदले के का जरूरत उहे अउ ओला सामिल करे म का दिक्कत हे? छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर म उदाहरण देय गे हे के ‘नेत्र’ ल ‘नेत्र’ लिखौ। पहिली बात तो ‘नेत्र’ छत्तीसगढ़ी सब्द नो हे अउ त म अधोरेक लगाय के का जरूरत हे? छत्तीसगढ़ी म त्रिभुवन अउ तिरभुवन ज्ञान अउ गियान दुनों लिखे-बोले जा सकथे। इही तरा ले ‘ऋ’ अउ ‘अं’ ल सामिल करे जाना चाही। काबर के बहुत अकन ‘ऋ’ वाला संज्ञा सब्द के उच्चारन छत्तीसगढ़ी म होथे। जइसे कृस्न, कृस्ना, कृपा, कृपाराम कृसि (उपज मंडी) आदि। अब बांचगे ‘अं’ एकर से कतको नांव बनथे। जइसे- अंजनी, अंगद, अंजोर, अंजोरा, अंजोरी, अंकाल, अंगना, अंगरा, अंगेठा, अंगूर आदि।
ये पत्र ल साहित्यकार मन करा पठोये जात हे। आसा हे प्रतिक्रिया मिलही। धन्नवाद
दिनेश चौहान
नवापारा राजिम
पुन: सकुंतला तरार, दादूलाल जोसी, डॉ. चन्द्रावती, नागेस्वर, मन अपन नांव के वर्तनील बदल डारे हवै। उन मन ल बधाई।
दिनेस

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